मुस्लिम समुदाय के लोगो का बहुत कम त्यौहार होता है ,ज़यादा तर हमने" ईद-अल-फ़ित्र " और "बकरीद"|bakrid| ये दोनों नाम सुने होंगे दोनों ही त्यौहार मुस्लिम समुदाय के लोगो के लिए बहुत अहम् है ,उनकी बहोत सारि आस्था इन त्यौहारों से जुड़ी है आज हमलोग बकरीद यानि eid-al-adha की बात करेंगे ,
"बरकरीद"|bakrid| या eid-al-adha का महत्व
"बकरीद"|bakrid| मुस्लिम समुदाय के लोगो का एक प्रमुख त्यौहार है ,इस दिन का इंतज़ार मुस्लिम समुदाय के लोग बेसब्री से करते है। इस त्यौहार के आते ही लोगो के चेहरे पे अलग ही खुसी होती है ,रमदान के 30 रोजो के बाद ईद आती है ,और लगभग 60 दिनों के बाद बकरीद आता है ,ईद त्यौहार के जाते ही लोग इस त्यौहार के बारे में सोचने लगते है। इस साल बकरीद 1 अगस्त को मनाई जाएगी
लोगो में इस त्यौहार की बहुत उत्सुकता है। ये त्यौहार पुरे परिवार के साथ मानते है ,इस दिन बच्चे मेले में घूमने जाते है और अपने दोस्तों के यहाँ घूमने जाते है ,
"बकरीद"|bakrid |के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग क्या-क्या करते है ,
इस दिन के बारे में बड़े-बुजुर्ग कहते है ,की जब तक नमाज ख़तम नहीं होती है ,तब तक हिरन अपने बच्चे को दूध नहीं देती है,और साथ ही हर कोई रोज़ा रखता है,जब तक क़ुरबानी नहीं हो जाती तब तक ,
ये त्यौहार खास करके बच्चो के लिए होता है क्युकी इस दिन तरह-तरह के पकवान बनते है ,और बच्चे इन्हे मज़े से खाते है।
बकरीद|bakrid|का त्यौहार 3 दिनों तक चलता है ,पहले दिन को सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा माना जाता है। दूसरे दिन को छोटा और आखरी दिन को सबसे छोटा कहाँ जाता है। क़ुरबानी 3 दिनों में से किसी दिन भी की जा सकती है ,जिनके परिवार बड़े होते है उनके वहा 3 नो दिन क़ुरबानी की जाती है ,
बकरीद|bakrid| के दिन की परम्परा |kya hota hai bakrid ke din|
बकरीद|bakrid|का दिन दरअसल क़ुरबानी का दिन होता है ,इस दिन के लिए लोग बड़े मोहब्बत से बकरा खरीदते है ,और उसकी क़ुरबानी देते है। जिसकी जितनी हैसियत होती है वो उतना मेहगा बकरा लेता है और इससे निकले वाले गोस्त|मीट| को "तबर्रुक" कहा जाता है ,और इस तबर्रुक को लोगो में बाटा जाता है ,और इसका कुछ हिस्सा रख लिया जाता है ,क़ुरबानी बकरीद की नमाज़ के बाद दी जाती है,चुकी बकरीद 3 दिनों तक चलता है इस लिए क़ुरबानी इन 3 दिनों मेसे किसी भी दिन की हो सकती है ,
जब कोई इंसान जानवर खरीद के लता है और उसे पाल -पोस के बड़ा करता है तो ज़ाहिर से बात है की उससे लगाओ हो जाता है ,और इसकी क़ुरबानी देना थोड़ा मुश्किल होता है ,उसे पालते समय उसका बहोत ख्याल रखना परता है, क्युकी क़ुरबानी के जानवर को किसी तरह की कोई तकलीफ या चोट नहीं लगनी चाहिए नहीं तो क़ुरबानी क़ुबूल नहीं होगी ,
जानवर खरीदते समय कुछ चीजों का ख्याल रखना परता जैसे की वो "दता " हुआ है या नहीं मतलब उसका कम से कम एक दाँत टुटा होना चाहिए ,ज़रूरी नहीं है क़ुरबानी बकरे के ही की जाये कुर्बानी बारे जानवर की भी की जा सकती है ,हर साल अलग-अलग किस्म का बकरा मार्किट में आता है ,कुछ बकरे थोड़े अलग होते है उनके बॉडी पे कुछ लिखे होते है ,इस तरह के बकरे काफी कीमती होते है ,क्यों की इनकी संख्या बहुत काम होती है और किम्मत बहोत ज़यादा|
कैसे सुरु हुई की क़ुरबानी की प्रथा
"इब्राहिम अलैहिस्लाम" जो मुस्लिम पैग़म्बर थे ,उन्होंने दो सादिया की थी ,उनकी पहली बीवी से उन्हें कोई औलाद नहीं थी तो उनकी बीवी ने कहा की आप दूसरी शादी करले उन्होंने शादी कर्ली ,
और उन्हें एक बेटा हुआ उनका नाम "इस्माइल अलैहिस्लाम" था जब वो 6 महीने के थे ,तो उनके पिता ने उन्हें अपनी पहली बीवी की बात सुनकर अपने बेटे और दूसरी बीवी को जंगल में छोड़ आये थे ,और जब वो बच्चा 10 साल का हुआ तो उन्हें वापस लेगये ,"इब्राहिम अलैहिस्लाम" अल्लाह ताला के बहोत करीबी थे ,
एक दिन वो सो रहे थे तो उन्हें एक "खवाब"|सपना| आया उन्होंने खवाब में देखा की अल्लाह ताला ने उन्हें हुकम दिया की वो अपनी किसी अजीज जो उन्हें बहुत ही प्यारा है उसकी क़ुरबानी दे ,उन्होंने बकरे की क़ुरबानी दी लेकिन अल्लाह ताला उनसे खुश नहीं हुए,
फिर वो रात को सो रहे थे उनके खवाब में फिरसे अल्लाह ताला आये उन्होंने फरमान दिया की तुम अपने बेटे की क़ुरबानी दो। जब वह सुबह उठे तो बहोत रो रहे थे तभी वहा इस्माइल अलैहिस्लाम आ गए और पूछा आप क्यों रो रहे है ,उन्होंने कहा , इस्माइल अलैहिस्लाम के बार-बार पूछने पर उन्होंने सारी बात बताई ,
साड़ी बाते सुनकर "इस्माइल अलैहिस्लाम" ने कहा अब्बू आप रोये मत मै अपनी क़ुरबानी देने को तैयार हु ,वो नाहा |अस्नान| करके तैयार होगये ,और उन्होंने अपने अब्बू से कहा ले चले मुझे वह जहा मेरी क़ुरबानी देनी है ,जब वो वहा गए तो वहा एक छोटा सा गढ्ढा था।
"इस्माइल अलैहिस्लाम" ने कहा की अब्बू|पापा| जब आप मेरी क़ुरबानी दे तो अपनी आँखो पे पट्टी बांध ले और मेरे हाथ पैर बांध दे ताकि जब मुझे सैतान ना भटकाये उन्होंने ऐसा ही किया और इस्माइल अलैहिस्लाम को लेटा कर छुरी चला दी जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो देखा की उनका बेटा बिकुल सही सलामत है उनके बेटे की जकह दुम्बे की क़ुरबानी हो गयी ,
इसके बात से क़ुरबानी की प्रथा सुरु हो गयी और आज भी मणि जाती है ,और बकरीद मनाई जाती है
"बरकरीद"|bakrid| या eid-al-adha का महत्व
"बकरीद"|bakrid| मुस्लिम समुदाय के लोगो का एक प्रमुख त्यौहार है ,इस दिन का इंतज़ार मुस्लिम समुदाय के लोग बेसब्री से करते है। इस त्यौहार के आते ही लोगो के चेहरे पे अलग ही खुसी होती है ,रमदान के 30 रोजो के बाद ईद आती है ,और लगभग 60 दिनों के बाद बकरीद आता है ,ईद त्यौहार के जाते ही लोग इस त्यौहार के बारे में सोचने लगते है। इस साल बकरीद 1 अगस्त को मनाई जाएगी
लोगो में इस त्यौहार की बहुत उत्सुकता है। ये त्यौहार पुरे परिवार के साथ मानते है ,इस दिन बच्चे मेले में घूमने जाते है और अपने दोस्तों के यहाँ घूमने जाते है ,
"बकरीद"|bakrid |के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग क्या-क्या करते है ,
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करते है ,
- नये कपड़े पहनते है
- नमाज़ पढ़ने के लिए ईदगाह जाते है
- और नमाज़ पढ़ने के बाद सबसे गले मिलते है और बकरीद की मुबारक बाद देते है ,
- ईदगाह से लौटने वक़्त ये ध्यान रखते है की जिस रास्ते से ईदगाह अये उस रस्ते से वापस नहीं जाना है कोई और रास्ता अपनाते है
- इस दिन बड़े लोग बच्चो को पर्वी देते है
- इस दिन मेले भी लगते है
- और इस दिन तरह-तरह के पकवान भी बनते है ,
ये त्यौहार खास करके बच्चो के लिए होता है क्युकी इस दिन तरह-तरह के पकवान बनते है ,और बच्चे इन्हे मज़े से खाते है।
बकरीद|bakrid|का त्यौहार 3 दिनों तक चलता है ,पहले दिन को सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा माना जाता है। दूसरे दिन को छोटा और आखरी दिन को सबसे छोटा कहाँ जाता है। क़ुरबानी 3 दिनों में से किसी दिन भी की जा सकती है ,जिनके परिवार बड़े होते है उनके वहा 3 नो दिन क़ुरबानी की जाती है ,
बकरीद|bakrid| के दिन की परम्परा |kya hota hai bakrid ke din|
बकरीद|bakrid|का दिन दरअसल क़ुरबानी का दिन होता है ,इस दिन के लिए लोग बड़े मोहब्बत से बकरा खरीदते है ,और उसकी क़ुरबानी देते है। जिसकी जितनी हैसियत होती है वो उतना मेहगा बकरा लेता है और इससे निकले वाले गोस्त|मीट| को "तबर्रुक" कहा जाता है ,और इस तबर्रुक को लोगो में बाटा जाता है ,और इसका कुछ हिस्सा रख लिया जाता है ,क़ुरबानी बकरीद की नमाज़ के बाद दी जाती है,चुकी बकरीद 3 दिनों तक चलता है इस लिए क़ुरबानी इन 3 दिनों मेसे किसी भी दिन की हो सकती है ,
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जानवर खरीदते समय कुछ चीजों का ख्याल रखना परता जैसे की वो "दता " हुआ है या नहीं मतलब उसका कम से कम एक दाँत टुटा होना चाहिए ,ज़रूरी नहीं है क़ुरबानी बकरे के ही की जाये कुर्बानी बारे जानवर की भी की जा सकती है ,हर साल अलग-अलग किस्म का बकरा मार्किट में आता है ,कुछ बकरे थोड़े अलग होते है उनके बॉडी पे कुछ लिखे होते है ,इस तरह के बकरे काफी कीमती होते है ,क्यों की इनकी संख्या बहुत काम होती है और किम्मत बहोत ज़यादा|
कैसे सुरु हुई की क़ुरबानी की प्रथा
"इब्राहिम अलैहिस्लाम" जो मुस्लिम पैग़म्बर थे ,उन्होंने दो सादिया की थी ,उनकी पहली बीवी से उन्हें कोई औलाद नहीं थी तो उनकी बीवी ने कहा की आप दूसरी शादी करले उन्होंने शादी कर्ली ,
और उन्हें एक बेटा हुआ उनका नाम "इस्माइल अलैहिस्लाम" था जब वो 6 महीने के थे ,तो उनके पिता ने उन्हें अपनी पहली बीवी की बात सुनकर अपने बेटे और दूसरी बीवी को जंगल में छोड़ आये थे ,और जब वो बच्चा 10 साल का हुआ तो उन्हें वापस लेगये ,"इब्राहिम अलैहिस्लाम" अल्लाह ताला के बहोत करीबी थे ,
एक दिन वो सो रहे थे तो उन्हें एक "खवाब"|सपना| आया उन्होंने खवाब में देखा की अल्लाह ताला ने उन्हें हुकम दिया की वो अपनी किसी अजीज जो उन्हें बहुत ही प्यारा है उसकी क़ुरबानी दे ,उन्होंने बकरे की क़ुरबानी दी लेकिन अल्लाह ताला उनसे खुश नहीं हुए,
फिर वो रात को सो रहे थे उनके खवाब में फिरसे अल्लाह ताला आये उन्होंने फरमान दिया की तुम अपने बेटे की क़ुरबानी दो। जब वह सुबह उठे तो बहोत रो रहे थे तभी वहा इस्माइल अलैहिस्लाम आ गए और पूछा आप क्यों रो रहे है ,उन्होंने कहा , इस्माइल अलैहिस्लाम के बार-बार पूछने पर उन्होंने सारी बात बताई ,
साड़ी बाते सुनकर "इस्माइल अलैहिस्लाम" ने कहा अब्बू आप रोये मत मै अपनी क़ुरबानी देने को तैयार हु ,वो नाहा |अस्नान| करके तैयार होगये ,और उन्होंने अपने अब्बू से कहा ले चले मुझे वह जहा मेरी क़ुरबानी देनी है ,जब वो वहा गए तो वहा एक छोटा सा गढ्ढा था।
"इस्माइल अलैहिस्लाम" ने कहा की अब्बू|पापा| जब आप मेरी क़ुरबानी दे तो अपनी आँखो पे पट्टी बांध ले और मेरे हाथ पैर बांध दे ताकि जब मुझे सैतान ना भटकाये उन्होंने ऐसा ही किया और इस्माइल अलैहिस्लाम को लेटा कर छुरी चला दी जब उन्होंने अपनी आँखे खोली तो देखा की उनका बेटा बिकुल सही सलामत है उनके बेटे की जकह दुम्बे की क़ुरबानी हो गयी ,
इसके बात से क़ुरबानी की प्रथा सुरु हो गयी और आज भी मणि जाती है ,और बकरीद मनाई जाती है
Great job
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